एक बात आपने शायद जरूर नोटिस की होगी कि संसद से लेकर दफ्तर तक आधी आबादी यानी की महिलाओं की संख्या आधे से भी कम है। वही जब बात लीडरशिप की आती है तो संख्या और भी ज्यादा घट जाती है। आपने कभी इसके पीछे की वजह को समझने की कोशिश की है। वैसे फॉर्च्यून इंडिया और एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च के सर्वे में सामने आया कि लीडरशिप पोजिशन में महिलाएं काफी पीछे हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और बिल बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इस स्टडी को पूरा करने में अपना सहयोग दिया है। इस रिसर्च में यह बात भी पता चली है कि आखिर महिलाओं के लीडरशिप में पीछे रहने का कारण क्या है। एक महिला आखिर क्यों बॉस नहीं बन पा रही है तो चलिए बताते हैं आपको क्या कहती है स्टडी।
लीडरशिप में पीछे महिलाएं
महिलाएं लीडरशिप में क्यों पीछे इसका जवाब जानने के लिए एक स्टडी की गई। फॉर्च्यून इंडिया और एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च के अध्ययन में बताया गया है कि लीडरशिप पोजिशन में महिलाएं काफी पीछे हैं। क्योंकि फॉर्च्यून इंडिया 500 में शामिल सिर्फ 1.6% कंपनियों की ही कमान महिलाओं के पास है। जबकि फॉर्च्यून इंडिया नेक्स्ट 500 कंपनियों में 5 प्रतिशत महिलाएं शीर्ष पर हैं। औसत के हिसाब से महिलाओं का लीडरशिप में प्रतिशत काफी कम रहा।
130 इंडस्ट्री लीडर्स का डिस्कशन
स्टडी के दौरान दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु में 16 राउंड टेबल डिस्कशन हुआ, जिसमें 130 इंडस्ट्री लीडर्स शामिल हुए। स्टडी में शामिल कंपनियों के सीईओ में 54% महिला और 46% पुरुष थे। रिपोर्ट के अनुसार, 30-40% वुमन एम्प्लॉई परिवार की जिम्मेदारी के चलते काम बीच में ही छोड़ देती हैं। इस स्टडी में महिलाओं की संख्या इसलिए ज्यादा रखी गई ताकी महिलाओं की असली परेशानी और वजह पता चल सके।
महिलाओं को लेना पड़ता ब्रेक
महिलाएं जब मैनेजमेंट में टॉप पर पहुंचती हैं, तब उन्हें शादी या परिवार की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ती है। मैटरनिटी लीव और बच्चे के जन्म के बाद भी महिलाओं के लिए मैनेजमेंट में लौटना बहुत मुश्किल होता है। इससे महिलाओं के करियर पर अचानक ब्रेक लग जाता है। करियर पर ब्रेक लगने से महिलाएं लीडरशिप पोजिशन में पिछड़ जाती हैं। यही कारण है कि कंपनियों के टॉप मैनेजमेंट के लिए वुमन लीडरशिप की कमी है।
कंपनियां नहीं देती मौका
कई कंपनियां महिलाओं को इसलिए नहीं रखतीं, क्योंकि उन्हें 6 महीने की मैटरनिटी लीव देनी पड़ेगी, जो वो अफोर्ड नहीं कर सकते। स्टडी के अनुसार कई वुमन लीडर्स अपने बच्चों के लिए की बोर्ड परीक्षाओं और अपने इन लॉज की खराब सेहत के चलते भी काम से ब्रेक ले लेती हैं। महिलााएं घर में सबके हित के बारे में सोचती हैं, सबकों साथ लेकर चलने का सोचती हैं। लेकिन इसकी वजह से उनका करियर नहीं बन पाता है।
महिलाओं की लाइफ की चुनौती
महिलाओं के लिए जॉब करना या करियर बनाना उतना आसान नहीं होता है जितना की एक मर्द के लिए होता है। क्योंकि महिलाओं को अपने घर की जिम्मेदारी भी साथ में निभाने होती हैं। घर पर परिवार के खाना बनाने से लेकर सास-ससुर की देखभाल करने का जिम्मा भी उन पर ही डाला जाता है। इन सबके बाद वह अपने करियर पर ध्यान दे पाती है, जो कि आसान बिल्कुल भी नहीं होता है।
लोगों की सोच से भी लगता ब्रेक
वहीं आज भी कई लोग ऐसे हैं जो महिलाओं के आगे बढ़ने को सही नहीं मानते हैं उनकी सोच सिर्फ इतना ही है कि महिलाएं घर के काम के लिए ही बनी है। इस सोच की वजह से भी कई महिलाओं के करियर पर ब्रेक लग जाता है। उनकी उन्हें फैमिली से वो सपोर्ट मिलता ही नहीं, जिसकी उन्हें उम्मीद रहती है।
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