तीन भाई-बहन में ईशान दूसरा बच्चा है। उसका एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन है। यूं तो ईशान सबसे बहुत प्यार करता है। स्कूल में अगर ईशान के खिलाफ कोई कुछ कह दे तो ईशान का उस बच्चे से झगड़ा होना तय है। इसी तरह अगर कोई उसकी बहन के साथ कोई शरारत कर दे तो ईशान मार-पीट पर उतर आता है। उसके इस व्यवहार के कारण अकसर उसे स्कूल में डांट पड़ती है। कभी-कभी शिकायत पैरेंट्स तक भी पहुंच जाती है। हालांकि ईशान को इन सबसे फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन ईशान को तब बहुत बुरा लगता है जब उसे अपने बड़े भाई के पुराने कपड़े पहनने पड़ते हैं, भाई की दो साल से रखी पुरानी किताबों का यूज करना पड़ता है। पिछले दिनों तो जब ईशान को पता चला कि पापा उसके भाई अर्पित के लिए नई साइकिल लाए हैं। जबकि उसे अर्पित की पुरानी साइकिल दे दी है। हालांकि अर्पित की साइकिल लेने के लिए ईशान ने अपने पैरेंट्स के साथ खूब झगड़े किए हैं। मार भी खाई है। पर जब पापा ने अर्पित को नई साइकिल दिलाई तो ईशान अपने कमरे में जाकर फूट-फूटकर रोने लगा। उसके मन में अब ये बात घर कर गई कि उसके पापा-मम्मी अर्पित और उसकी छोटी बहन ईशानी को ज्यादा प्यार करते हैं। उसे कोई प्यार नहीं करता।
ईशान के मन में क्या चल रहा है, इस बात का अहसास घर में किसी को नहीं था। हालांकि उसकी मां जान गई थी कि अर्पित के लिए लाई गई साइकिल के कारण ईशान का मन खराब है। लेकिन जब ईशान ने पुरानी साइकिल मिलने पर घर में कोई बवाल नहीं किया, तब उसकी मां ने सोचा कि शायद ईशान को इससे फर्क नहीं पड़ा।
जबकि घर वालों की सोच के उलट ईशान मन से बहुत दुखी था। उसे यकीन हो गया था कि घर में जो भी नई चीज आती है, वह बड़े भाई या छोटी बहन के लिए होती है। ईशान स्वभाव से चिड़चिड़ा होने लगा। छोटी-छोटी बात पर मम्मी-पापा से लड़ने लगा। अपने भाई से तो जैसे उसने बात तक करनी बंद कर दी। स्कूल में अगर कभी एक-दूसरे से मुलाकात हो जाए तो ईशान नजरें चुराकर जाने लगा।
अर्पित ने ये सब बातें अपनी मां सुजाता से शेयर की। सुजाता ने ईशान के बिहेवियर को बचकानी हरकत समझकर इग्नोर कर दिया। लेकिन कुछ दिनों पहले मोहल्ले के बच्चों के साथ जब अर्पित का झगड़ा हुआ और ईशान वहीं खड़ा सबकुछ देखता रहा। अपने भाई के सपोर्ट में आकर मोहल्ले के लड़कों को कुछ नहीं कहा। झगड़े में अर्पित को लड़कों ने पकड़कर पीटा भी। फिर भी ईशान अपने भाई की मदद करने नहीं आया। अर्पित को काफी चोट आई। जब दोनों भाई घर पहुंचे और उनकी मां को घटना का पता चला तो ईशान को इस पर काफी डांटा। यहां तक कि गुस्से में ईशान को एक चाटा जड़ दिया। तभी रोते-रोते ईशान बोल पड़ा, ‘उसे मोहल्ले के लड़कों के साथ लड़ने की क्या जरूरत थी? मैं क्यों उसके लिए मार खाऊं? जो भी नई चीज इस घर में आती है, वे सब उसी की होती है। मेरे दोस्त सही कहते हैं। मैं आप आपका बेटा हूं ही नहीं। अगर होता तो अर्पित की हर पुरानी मुझे नहीं देते। कभी-कभी कोई चीज नई भी देते। जो कपड़े मैंने अभी पहने हैं, वो भी तुम्हारे बड़े बेटे के हैं। साइकिल उसे दिला दो। ईशानी को तो कोई चीज पुरानी नहीं देते। क्यों? मैं ही आपको मिला हूं हर पुरानी चीज देने के लिए? ये क्या बात हुई? मैं अर्पित की हेल्प कभी नहीं करूंगा। आप चाहे मुझे इससे भी ज्यादा मारो।’
ईशान की बातों ने सुजाता को आहत जरूर किया था, लेकिन वो समझ गई थी कि कहीं न कहीं वह अपने बेटे ईशान के साथ गलत कर रही है। उसे यकीन दिलाना जरूरी है कि ईशान भी अपने बाकी भाई-बहन की तरह खास है। अगर ऐसा नहीं किया तो उसके मन में अपने भाई और बहन के खिलाफ कड़वाहट भर जाएगी।
हालांकि सुजाता ने ईशान के साथ कुछ स्पेशल नहीं किया, लेकिन बात-बात पर ईशान को यकीन दिलाती रही कि वह खास है। फिर चाहे बातचीत के जरिए हो या स्वभाव के जरिए। वह जिस तरह तीनों को डांटती, उसी तरह तीनों को प्यार करती। अगर ईशान को अर्पित की कोई पुरानी चीज देते, तो ईशानी को ईशान की चीजें इस्तेमाल करनी पड़ती। अगर अर्पित को साइकिल मिली थी तो अगली बार ईशान को गिफ्ट में प्ले स्टेशन मिला। सुजाता ने अब इस बात का पूरा ध्यान रखा कि किसी बच्चे को कमतरी का अहसास न हो, क्योंकि पैरेंट्स के लिए हमेशा हर बच्चे खास होते हैं।
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